शुक्रवार, 8 जून 2012

अर्जुन कवि के दोहे

अर्जुन कवि के दोहे

( अर्जुन कवि ने अपने जीवन में दस लाख दोहे लिखे। उनका नाम ‘वर्ल्ड गिनीज बुक’ में शामिल किया गया। कबीर की तरह वे भी किसी विद्यालय में नहीं पड़े, किन्तु अपने अनुभव से अनीश्वरवाद की समझ तक पहुंचे। )




अर्जुन अनपढ़ आदमी, पढ्यौ न काहू ज्ञान।
मैंने तो दुनिया पढ़ी, जन-मन लिखूँ निदान।।


रोटी तू छोटी नहीं, तो से बड़ौ न कोय।
राम नाम तोमें बिकै, छोड़ै सन्त न तोय।।


उत्पादक की साख है, जग पहचान हजार।
चन्दा पै ते दीखती, खड़ी चीन दीवार।।


राज मजब विद्या धनै, हैगौ इन अभिमान।
ठगै, काम सैतान के, होय न जन-कल्यान।।


पंच-तत्व को बाप है, सिरम तत्व पिरधान।
या के बिन वे ना फलैं, भूखों मरै जहान।।


नाम नासतिक धरि दियौ, जिनकूँ सच्चो ज्ञान।
पाखण्डै मानैं नहीं, कुदरत है भगवान।।


अर्जुन बुल बुल का करै, परे पिछारी काग।
ऊपर दुश्मन बाज है, नीचे बैरी नाग।।


मन्दिर मस्जिद आपके, हैं कैसे भगवान।
पण्डित मुल्ला नित लड़ें, अपने-अपने मान।।


आजादी आंधी चली, हवा दीन तक नाँय।
दिन सूरज की धूप में, राति राति में जाय।।


अर्जुन भारत राज में, उड़ै मंतरी मोर।
कंचन पंख समेटते, घोटाले घनघोर।।


कुदरत नैं धरती रची, लिखा न हिन्दुस्तान।
ना अमरीका, रूस है, ना ही पाकिस्तान।।


तू पौधा कब ते भई, अमरबेल विष बेल।
धरती तक देखी नहीं, अमृत पियै सकेल।।


उडि़ गये हंसा देश के, आजादी दिलवाय।
रह गये बगुला तीर पै, राज तिलक करवाय।।


लाखन साधुन में कहीं, मिलै न काबिल एक।
उत्पादक सब काबिलै, दे फल पेड़ हरेक।।

० अर्जुन कवि
- कवि कुटीर, चटीकना, जिला करौली  ( राज. )

2 टिप्‍पणियां:

  1. रोटी तू छोटी नहीं, तो से बड़ौ न कोय।
    राम नाम तोमें बिकै, छोड़ै सन्त न तोय।।
    DEKHO SOCHO TO ek bahut bada sach,
    ..........SUNDAR......

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  2. रवि भाई, 10 लाख दोहे ये तो 18 पुराणों से भी आगे निकल गये! आश्चर्य होता है... विश्वास भी नहीं हो रहा।

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