इस बार अभिव्यक्ति के 38वें अंक से हाड़ौती भाषा जो राजस्थानी का ही एक रूप है का एक गीत प्रस्तुत है। इस गीत में मिट्टी का ढ़ेला आप से अपनी बात कर रहा है कि वही है जिस से सारी सृष्टि का निर्माण हुआ है।
हाड़ौती (राजस्थानी) गीत
- विष्णु 'विश्वास'
बना रूप अर बना कदर
को,
न्ह कोयाँ सूँ राळ्यो
- ढाळ्यो।
सब नै छोड़ दियो तो
कांई,
धूप, बाळ, पाणी को पाळ्यो।।
ज्याँ कै लेखै बना
बात ईं कण-कण हो’र बखर जाउँ,
ऊण्डा-ऊण्डा फाळ्या
सह-सह अन्न-धन्न म्हूँ नपजाऊँ,
तो भी जस कोई न्ह ईं
लेखै ही म्हूँ बेकळ छूँ।
काँई ताना मारो म्हारै
म्हूँ ढोयो ढेकळ छूँ।।
सौ-सौ बार गुंधूँ छूँ
म्हूँ पण चाक चढूँ इतराऊँ,
पोवणी दिवाणी अर कै
धूपाड़ो बण जाऊँ,
जीबा को चुस तो म्हारै
भी चाहे रोज आग म्ह न्हाऊँ,
जण-जण की तस मेटू म्हारी
सोचू तो मर जाऊँ,
बाळक-बोल अबोलक म्हूँ,
बड़-बूढ़ा की अकल छूँ।
काँई ताना मारो म्हारै
म्हूँ ढोयो ढेकळ छूँ।।
चांदी की कमजोरी कै
वा ऐर-सेर को धन छै,
चूमासा म्ह काँसा पीतळ को बदरंग बदन छै,
बात करूँ हीरा-पन्ना
की व्ह तो रूप-रतन छै,
जाणै जे ही जाणै छै
कुण या मँ कण-कण छै,
कन्या पीण्ड बणा पूजै
ईं कै अहसान तळै छूँ।
काँई ताना मारो म्हारै
म्हूँ ढोयो ढेकळ छूँ।।
म्हारै हिवड़ै घणी रंधी
तपस्याँ की जाई सीता,
अगन परीछा द्याँ पाछै
भी रूस्यो रह्यो विधाता,
सपणा कद साँचा होया
जै घोळ-घोळ कै पीता,
कतणी बार पढैर धरदा
व्हा की व्हाई छै गीता,
अन्त घड़ी म्हं आडो
आऊँ मूंडै तुळसी-दळ छूँ।
काँई ताना मारो म्हारै
म्हूँ ढोयो ढेकळ छूँ।।
यूँ तो सारी की सारी
म्हारी ही माया छै,
ऊँळी-सूँळी फर-फर चर
ले राम की गायाँ छै,
छोटो मूण्डो बड़ी बात
ये सब म्हारा जाया छै,
म्हारी असल शकल सूरत
तो करषाणी काया छै,
पाणत करती हालण का
म्हूँ पावाँ की पगतळ छूँ।
काँई ताना मारो म्हारै
म्हूँ ढोयो ढेकळ छूँ।।
- ग्राम बालाखेड़ा,
ग्राम पोस्ट बालदड़ा, तहसील अंता, जिला बाराँ (राजस्थान)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें