सामाजिक यथार्थवादी साहित्य
की पत्रिका अभिव्यक्ति के मार्च, 2012 में प्रकाशित 38वें अंक से इस पोस्ट में प्रस्तुत है
आपका तिस्ता हिमालय के संपादक राजेन्द्र प्रसाद सिंह का नववर्ष पर लिखा एक विशेष आलेख...
1 जनवरी 2012, नये साल का प्रथम दिन। नये साल की खुशी में एक रोज पहले से ही लोग-बाग झूम रहे...। देश के होनहार युवा-युवती शहर के नामी होटलों में देर रात तक जश्न मनाते रहे, मदिरा तथा डांस-डिस्को में पूरी तरह मशगूल। जश्न का खुमार अभी उतरा भी नहीं कि एक उम्मीद की सुबह ने अपनी आंखें खोल दीं और हम भी बिस्तर से उठ गये। संभावनाओं का सूरज अतीत के दुख-दर्द व हादसों पर अभी पूरी तरह पसरा भी नहीं कि अहले हिंद फौज के कर्तव्यपरायण युवा लैब असिस्टैंट अरबिंद सिंह, आर्मी नम्बर-13971253-पी हवलदार का फोन आया। ‘सर आप कैसे हैं? आपकी सलामती चाहता हूं। आपके सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करता हूं...।’ सुबह-सुबह अरबिंद सिंह के फोन ने मुझे चौंका दिया। फौज के कुछ कायदे व वसूल होते हैं। खासकर मानसिक वार्ड के मरीजों को यह सहूलियत नहीं दी जाती कि वे बाहर के लोगों से खुल कर बात करें। मानसिक वार्ड के हालात से बाहर की दुनिया बिल्कुल बेखबर होती है। क्रंदन। चीत्कार। एक वीभत्स दुनिया, जहां एक से बढ़ कर एक डरावने स्वप्न आते हैं, जहां के भयानक दृश्य से सख्त आदमी भी कमजोर पड़ जाता है। यंत्रणाओं के हमने अनेक बर्बर तरीके ईजाद कर लिए हैं। उन्हीं में से एक है किसी स्वस्थ व्यक्ति को मानसिक वार्ड में जबरन डाल देना। बंद कमरे की जो आवाजें बाहर नहीं जातीं, जाहिर है उससे आम आदमी बेखबर होता है। शासन-प्रशासन के लिए यह संतोष की बात है। आप अपनी आंखें बंद रखें, कान से कुछ सुनें नहीं और मगज दूसरों के हवाले कर दें। मुंह बंद रखें, गांधी के तीनों बंदरों की तरह...। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाढ़ लें। समाज व समय के संकट से मुंह फेर लें। दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, उसे ईश्वर का इन्साफ समझें। अगर कोई बच्चा इश्तिहा से दम तोड़ रहा हो तो समझें कि वह अपने किए का फल पा रहा। दरअसल हमारी न्याय-व्यवस्था के सामने समस्या तो तब उठ खड़ी होती है जब आदमी हिलने-डोलने लगता है। आदमी सोचने लगता है। आदमी आदमी की भाषा बोलना शुरू कर देता। आदमी जब सवाल खड़ा करने लगे और सामाजिक समस्याओं के लिए इल्जाम व्यवस्था पर मढ़ने लगे तब...? जब वह किसी जनद्रोही बेईमान के गाल पर चांटा जड़ दे और अपने हक की आवाज बुलंद करे तब समझना चाहिए कि वह बगावत पर उतर गया है। जब न्याय पाने के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं तब आदमी बगावती तेवर अपना लेता है। फिर तो शासन-प्रशासन के सामने वह एक बड़ी चुनौती खड़ी कर देता है। जब देश की आबादी का एक हिस्सा समर्पण-सुख की तलाश में भटक रहा हो, घुटने टेक रहा हो और अवसर का भरपूर लाभ बटोरने में विभोर हो, तब क्या आप उस दौड़ में शामिल होना नहीं चाहेंगे? जाहिर है औसतन लोग वही करना चाहेंगे। हमारे अधिकतर राजनेता, उनके गुर्गे, और नौकरशाह आज उसी दौड़ में शामिल हैं। भारतीय सेना-संगठन पर राष्ट्र की सुरक्षा का दारोमदार है, वह भी इस कलंक से मुक्त नही...। राष्ट्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि प्रजातंत्र के जालिम दुश्मन ही देश के रहनुमा बने हुए हैं। यह खेल अर्से से चला आ रहा और लोग-बाग देख रहे कि प्रजातंत्र के चारों स्तंभ एक-एक कर निर्वस्त्र होते जा रहे...। हमारे लिए चिंता की एक बड़ी वजह है। अगर लोग सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं पर आंदोलित न हों तो हमारे लिए जीवित व मुर्दों में फर्क कर पाना मुश्किल हो जाय...।
जिस अजूबे किरदार को मैं लगभग भूल चुका था, अचानक उसकी आवाज ने मेरी स्मृतियों में अतीत के कई भयानक व अमानवीय दृश्यों को फिर से ला हाजिर कर दिया। स्वाभाव से निडर। अपने कर्तव्य के प्रति सदैव सजग व ईमानदार।
आवाज में अक्खड़पन। विचार से दृढ़। ईश्वर के प्रति अटूट आस्था। देश के लिए मर-मिटने का जज्बा रखने वाले अरबिंद से मैंने पूछा, ‘क्या आप पागलखाने से बाहर आ गये?’ ‘सर! मुझे फौज से निकाल दिया गया।’ सहज भाव से अरबिंद ने यह बताया। उसकी आवाज में वही ठसक। अखड़पन। अपने आदर्श व कर्तव्य के प्रति सदैव सजग व समर्पित रहने वाले अरबिंद को फौज से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यह सोच कर मुझे थोड़ी राहत मिली कि पागलखाने की यंत्रणा से उस बेचारे को मुक्ति मिल गयी...। थोड़ा दर्द भी हमने अनुभव किया। अरबिंद के बारे में कई बातें हैं जिसे वक्त आने पर कहूंगा। बात-बात पर अपने अधिकारियों के नाजायज कार्यों का निर्भीकता के साथ विरोध करने वाला शख्स फौज से निकाल दिया गया। चलिए अच्छा ही हुआ, ऐसे भी देश को काबिल व ईमानदार लोगों की जरूरत नहीं रही। दरअसल अरबिंद का अब तक जीवित रहना ही मेरे लिए आश्चर्य की बात है। शायद साल भर पहले तिस्ता-हिमालय में उसके बारे में खबर नहीं आयी होती तो वह अब तक पूरी तरह पागल बन चुका होता।
अरबिंद से मेरा प्रथम परिचय नवंबर 2010 में हुआ। नेपाली के एक कद्दावर साहित्यकार व प्रख्यात रंगकर्मी ने मुझे भारतीय फौज के उस जवान के बारे में बताया। चंद भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों द्वारा सुनियोजित तरीके से उसकी जुबान बंद कराने की हर संभव कोशिश की जा रही थी। 7 नवंबर 2010 को अरबिंद कोलकाता के कमांड होस्पीटल के मनोरोग वार्ड में जबरन डाल दिया गया और उसे पागल बनाने का हर फरेब किया जाने लगा। दरअसल उसका अपराध यह रहा कि उसने जवानों के रम एलांउस के पैसे मारे जाने पर अपना एतराज जताया था। सीओ सीओएल ए. के. विश्वास के आदेश के बावजूद उसने हवलदार प्रसांता कुमार की यूरिन व ब्लड रिपोर्ट को चेंज नहीं किया...। इसी तरह के और भी नाजायज कार्यों को करने से उसने साफ तौर पर इंकार कर दिया था। हमने मुश्किल से उस जवान से मुलाकात की और कारणों की सघन पड़ताल की जिसके कारण उसे कलकत्ता के कमांड हस्पीटल के साईकाइअट्रीक वार्ड में डाल कर रखा गया था। जो तथ्य सामने आये वे चौंकाने वाले थे। उन तथ्यों की रौशनी में जब हमने भ्रष्टाचार में शामिल संबंधित सैन्य अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो सीओ सीओएल एके विश्वास अपनी कड़क आवाज व फौजी अंदाज में बोले, ‘आपकी हिम्मत कैसे हुई हमसे यह पूछने की...। पहले आप हमें यह बतायें कि आप अरबिंद सिंह से मिले कैसे...? हमारे कमांड होस्पीटल में परिंदे भी पर नहीं मार सकते। हमें यह बताइए कि वहां जाने में किसने आपकी मदद की? हम उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे...।’ जब हमने उन्हें बताया कि आपका अपराध संगीन है। आप पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चल सकता है। आरोप प्रमाणित होने पर कोर्ट मार्शल भी...। तब उनका तेवर नरम पड़ गया और वह मेमने की तरह मिमियाने लगे। बोले, ‘हमें संपादकों से बहुत डर लगता है। अगर उसे मैं मानसिक वार्ड में नहीं डालता तो वह मुझे किसी समय भी मौका पाकर गोली मार देता। उसने गोली मारने की बात खुद मुझसे कही थी। वह जहां कहीं भी गया समस्या खड़ी की...।’ अरबिंद की नौकरी जाने का हमें गम है। साथ ही व्यवस्था से इस बात का रंज भी कि बड़े अपराधी अब भी बचते जा रहे...। फिलहाल हम इतिहास के करवट बदलने की प्रतीक्षा कर रहे। नये साल पर मुझे सैकड़ों ने बधाई दी है लेकिन मैं सिर्फ अरबिंद की बधाई को ही कबूल कर रहा हूं। जो काम अरबिंद नहीं कर सका, उसे और कोई जरूर पूरा करेगा। इसी विश्वास के साथ हम भी नये साल का स्वागत कर रहे हैं।
- संपादक - आपका तिस्ता-हिमालय, अपर रोड, गुरूंग नगर, पो. प्रधान नगर, सिलीगुड़ी-3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें