शहरयार |
मशहूर शायर शहरयार हाल ही में हमारे बीच से गुजर गये। उन्होंने प्रगतिशील शायरी के कलात्मक-पक्ष को गहरा किया। फिल्म ‘उमरावजान’ के लिए लिखी गई ग़ज़लों व नज़्मों से उन्हें विशेष ख्याति मिली। मिर्ज़ा गालिब एवार्ड एवं भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी उन्हें सम्मानित किया गया। अपने करीबी जनवादी लेखक साथी डॉ. कुँवरपाल सिंह की स्मृति में उनके द्वारा लिखी एक कविता और दो ग़ज़लें अभिव्यक्ति के 38वें अंक में प्रकाशित की गई हैं, यहाँ उन की कविता प्रस्तुत है-
डॉ. कुँवरपाल सिंह की स्मृति में लिखी एक कविता
मौत तू जीती है .....
वो हारा नहीं
शहर में मौजूद होता मैं, तो तुझको देखता
ऐ हवा!
तू मेरा सूरज बुझाती किस तरह
वो सरापा ज़िन्दगी था
रोशनी... बस रोशनी था
ख़्वाब देखे और दिखाये उम्र भर
ख़्वाब उसके पास इतने थे
कि नींदें कम पड़ीं
इस ज़मीं के वास्ते
आसमां से उसने झगड़ा कर लिया
जो कहा करके दिखाया
अहद... मेरे अहद की पहचान था वह
कुछ अजब ही और अलग इन्सान था वह
वो जिया तो अपनी शर्तों पर जिया
कोई समझौता कहाँ उसने किया!
ज़िन्दगी के खेल में सच है यही
मौत तू जीती है... वो हारा नहीं
वो हारा नहीं
शहर में मौजूद होता मैं, तो तुझको देखता
ऐ हवा!
तू मेरा सूरज बुझाती किस तरह
वो सरापा ज़िन्दगी था
रोशनी... बस रोशनी था
ख़्वाब देखे और दिखाये उम्र भर
ख़्वाब उसके पास इतने थे
कि नींदें कम पड़ीं
इस ज़मीं के वास्ते
आसमां से उसने झगड़ा कर लिया
जो कहा करके दिखाया
अहद... मेरे अहद की पहचान था वह
कुछ अजब ही और अलग इन्सान था वह
वो जिया तो अपनी शर्तों पर जिया
कोई समझौता कहाँ उसने किया!
ज़िन्दगी के खेल में सच है यही
मौत तू जीती है... वो हारा नहीं
कुछ अजब ही और अलग इन्सान था वह
जवाब देंहटाएंवो जिया तो अपनी शर्तों पर जिया
sadar naman
Waah... Shaharyar ji ki kyaa baat hai...
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